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किसे हम अपना कहें कोई ग़म-गुसार नहीं | शाही शायरी
kise hum apna kahen koi gham-gusar nahin

ग़ज़ल

किसे हम अपना कहें कोई ग़म-गुसार नहीं

हसीब रहबर

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किसे हम अपना कहें कोई ग़म-गुसार नहीं
हमें जब अपने पराए पे ए'तिबार नहीं

हम अपने दौर की सच्चाइयों को लिखते हैं
क़लम हमारा किसी का तो मुस्तआ'र नहीं

जो बे-वफ़ा थे वही लोग पा गए ए'ज़ाज़
मिरी वफ़ाओं का अब तक कहीं शुमार नहीं

हमारे सर पे बरस जाएँगे कहाँ पत्थर
तुनक-मिज़ाजी-ए-मौसम का ए'तिबार नहीं

दुआएँ दे के जो बच्चों को शहर भेजेंगे
अब ऐसे गाँव में कोई बुजु़र्गवार नहीं

हज़ार मुफ़लिस-ओ-नादार मैं सही 'रहबर'
ख़ुदा का शुक्र किसी का भी क़र्ज़-दार नहीं