EN اردو
किस उजाले का निशाँ हैं हम लोग | शाही शायरी
kis ujale ka nishan hain hum log

ग़ज़ल

किस उजाले का निशाँ हैं हम लोग

फ़रीद जावेद

;

किस उजाले का निशाँ हैं हम लोग
किन अँधेरों में रवाँ हैं हम लोग

नूर-ए-ख़ुर्शीद को इल्ज़ाम न दो
सुब्ह का ख़्वाब-ए-गिराँ हैं हम लोग

जैसे भटका हुआ राही हो कोई
यूँही हर सू निगराँ हैं हम लोग

कभी आवरगी-ए-निखत-ए-गुल
कभी ज़ंजीर-ए-गिराँ हैं हम लोग

दूर तक दश्त-ए-जुनूँ है 'जावेद'
आबला-पा गुज़राँ हैं हम लोग