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किस तरह रख लूँ साथ किसी हम-सफ़र को मैं | शाही शायरी
kis tarah rakh lun sath kisi ham-safar ko main

ग़ज़ल

किस तरह रख लूँ साथ किसी हम-सफ़र को मैं

रहबर जौनपूरी

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किस तरह रख लूँ साथ किसी हम-सफ़र को मैं
पहचानता हूँ ख़ूब हर इक मो'तबर को मैं

दामन में जिस के खेल रही हो शब-ए-सियाह
कैसे करूँ क़ुबूल भला इस सहर को मैं

रोता है दिल सियासत-ए-अहद-ए-जदीद पर
जब देखता हूँ ग़म से परेशाँ बशर को मैं

उम्र-ए-दराज़ 'ख़िज़्र' मुबारक हो आप को
अपना रहा हूँ ज़िंदगी-ए-मुख़्तसर को मैं

'रहबर' नशात-ओ-ऐश की मंज़िल क़रीब है
तय कर चुका हूँ ग़म की हर इक रहगुज़र को मैं