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किस तरह भूले तिरे अल्फ़ाज़-ए-बेजा क्या करूँ | शाही शायरी
kis tarah bhule tere alfaz-e-beja kya karun

ग़ज़ल

किस तरह भूले तिरे अल्फ़ाज़-ए-बेजा क्या करूँ

उर्मिलामाधव

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किस तरह भूले तिरे अल्फ़ाज़-ए-बेजा क्या करूँ
वहशतें या हसरतें जो भी हैं ले जा क्या करूँ

दिल हथेली पे रखा और साथ में इक ख़त दिया
कुछ नहीं बाक़ी बचा है क्यूँ ये भेजा क्या करूँ

हर घड़ी हलकान रहना और न सोना रात भर
और जो तंहाई दी थी वो भी है जा क्या करूँ

कब तलक चल पाएगी ये एक तरफ़ा ज़्यादती
मैं भी जानूँ हूँ तग़ाफ़ुल जा कहे जा क्या करूँ

मुझ को सुनना ही नहीं है तल्ख़ियों का फ़ल्सफ़ा
उम्र भर तो मैं ने तन्हा ग़म सहेजा क्या करूँ