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किस तरह आए तिरी बज़्म-ए-तरब में आइना | शाही शायरी
kis tarah aae teri bazm-e-tarab mein aaina

ग़ज़ल

किस तरह आए तिरी बज़्म-ए-तरब में आइना

असीर लखनवी

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किस तरह आए तिरी बज़्म-ए-तरब में आइना
है नज़र-बंद आज-कल शहर-ए-हलब में आइना

हिन्द से उस तक जो ले जाए कोई तस्वीर-ए-यार
शर्म से लैला न देखे फिर अरब में आइना

बज़्म में बुलवाए जल्दी कि इक मुद्दत से है
इश्तियाक़-ए-ज़ुल्फ़-ओ-ख़त्त-ओ-चश्म-ओ-लब में आइना

नौकरी भी की तो हैरानी फ़क़त हम को मिली
आरसी तनख़्वाह में पाई तलब में आइना

शैख़-साहब ता-कुजा आराइश-ए-रेश-ए-सपेद
देखिए शाना बला में है ग़ज़ब में आइना

साक़िया ये आइना है तेरा मय-ख़ाना नहीं
है हर इक साग़र कफ़-ए-बिन्तुल-अ'नब में आइना

देखने जाता है उस को ताब-ए-नज़्ज़ारा नहीं
सादा-लौह उस से हुआ मशहूर सब में आइना