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किस शोर-ए-जहन्नुम में फ़ज़ा डूब चली है | शाही शायरी
kis shor-e-jahannum mein faza Dub chali hai

ग़ज़ल

किस शोर-ए-जहन्नुम में फ़ज़ा डूब चली है

ख़ुर्शीदुल इस्लाम

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किस शोर-ए-जहन्नुम में फ़ज़ा डूब चली है
दिल धड़के है सीने में नवा डूब चली है

वो ख़ून की मौजें हैं हर इक सू कि कमर तक
फ़र्ख़न्दा जमालों की क़बा डूब चली है

वो हब्स का आलम है कि हर साँस है घायल
क्या ज़िक्र हुआ नब्ज़-ए-हवा डूब चली है

क्या जानिए किस गोशे से उमडी है सियाही
क्या कहिए कि किरनों की रिदा डूब चली है

इस शोर में क्या कोई सुनेगा मिरी आवाज़
जिस शोर में मातम की सदा डूब चली है