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किस शय का सुराग़ दे रहा हूँ | शाही शायरी
kis shai ka suragh de raha hun

ग़ज़ल

किस शय का सुराग़ दे रहा हूँ

राशिद मुफ़्ती

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किस शय का सुराग़ दे रहा हूँ
अंधे को चराग़ दे रहा हूँ

देते नहीं लोग दिल भी जिस को
मैं उस को दिमाग़ दे रहा हूँ

बख़्शिश में मिली थीं चंद कलियाँ
तावान में बाग़ दे रहा हूँ

तू ने दिए थे जिस्म को ज़ख़्म
मैं रूह को दाग़ दे रहा हूँ

ज़ख़्मों से लहू टपक रहा है
क़ातिल को सुराग़ दे रहा हूँ