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किस से पैमान-ए-वफ़ा बाँधते हो | शाही शायरी
kis se paiman-e-wafa bandhte ho

ग़ज़ल

किस से पैमान-ए-वफ़ा बाँधते हो

जमील हमदम

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किस से पैमान-ए-वफ़ा बाँधते हो
वक़्त का आब-ए-रवाँ है ये तो

कोई सुन लेगा तो चर्चा होगा
अपने दिल से भी ये बातें न करो

कोई बजती हुई शहनाई है
झाँक कर पर्दा-ए-गुल में देखो

जब सितारों के कँवल खिलते हैं
झिलमिलाता है तुम्हारा परतव

दिल के आँगन में किरन नाचेगी
चाँदनी रात में आवाज़ तो दो

ज़ख़्म फिर से न हरे हो जाएँ
मुझ से यूँ प्यार की बातें न करो

आप का हम-दम-ए-दैरीना हूँ
सर उठाओ मिरी जानिब देखो