किस रोज़ इलाही वो मिरा यार मिलेगा
ऐसा भी कभी होगा कि दिलदार मिलेगा
जूँ चाहिए वूँ दिल की निकालूँगा हवस मैं
जिस दिन वो मुझे कैफ़ में सरशार मिलेगा
इक उम्र से फिरता हूँ लिए दिल को बग़ल में
इस जिंस का भी कोई ख़रीदार मिलेगा
मिल जाएगा फिर आप से ये ज़ख़्म-ए-जिगर भी
जिस रोज़ कि मुझ से वो सितमगार मिलेगा
ये याद रख ऐ काफ़िर-ए-बद-केश क़सम है
मुझ सा न कोई तुझ को गिरफ़्तार मिलेगा
'ईमान' न कहता था मैं तुझ से ये हमेशा
जो शोख़ मिलेगा सो दिल-आज़ार मिलेगा
ग़ज़ल
किस रोज़ इलाही वो मिरा यार मिलेगा
शेर मोहम्मद ख़ाँ ईमान