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किस राह पे हैं रवाँ-दवाँ हम | शाही शायरी
kis rah pe hain rawan-dawan hum

ग़ज़ल

किस राह पे हैं रवाँ-दवाँ हम

शफ़क़त काज़मी

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किस राह पे हैं रवाँ-दवाँ हम
जाएँगे ख़बर नहीं कहाँ हम

इक बार फ़रेब खा गए थे
अब तक हैं किसी से बद-गुमाँ हम

यूँ तेरी निगाह से गिरे हैं
गोया थे मता-ए-राएगाँ हम

रस्तों की ख़बर न मंज़िलों की
क्या जानिए आ गए कहाँ हम

दिल में थीं कुछ ऐसी हसरतें भी
तुझ से जो न कर सके यहाँ हम

गुज़री है क़फ़स में उम्र लेकिन
भूले नहीं याद आशियाँ हम

हर हाल ख़ुशी उन्ही की चाही
करते रहे पास-ए-दोस्ताँ हम

पेश आए न-जाने क्या सफ़र में
घर से तो चले हैं शादमाँ हम

इक मंज़िल-ए-बे-निशाँ की धुन में
'शफ़क़त' न फिरे कहाँ कहाँ हम