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किस क़यामत की घुटन तारी है | शाही शायरी
kis qayamat ki ghuTan tari hai

ग़ज़ल

किस क़यामत की घुटन तारी है

ज़करिय़ा शाज़

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किस क़यामत की घुटन तारी है
रूह पर कब से बदन तारी है

कौन ये साया-फ़गन है आख़िर
मेरे सूरज पे गहन तारी है

बात क्या और नई हम सोचें
जब वही चर्ख़-ए-कुहन तारी है

सिर्फ़ हम ही तो नहीं टूटे हैं
रास्तों पर भी थकन तारी है

'शाज़' उड़ता ही चला जाता हूँ
कैसी ख़ुश्बू की लगन तारी है