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किस क़यामत का है बाज़ार तिरे कूचे में | शाही शायरी
kis qayamat ka hai bazar tere kuche mein

ग़ज़ल

किस क़यामत का है बाज़ार तिरे कूचे में

आरज़ू सहारनपुरी

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किस क़यामत का है बाज़ार तिरे कूचे में
बिकने आते हैं ख़रीदार तिरे कूचे में

तो वो ईसा है कि ऐ नब्ज़-शनास-ए-कौनैन
इब्न-ए-मरयम भी है बीमार तिरे कूचे में

इज़्न-ए-दीदार तो है आम मगर क्या कहिए
चश्म-ए-बीना भी है बेकार तिरे कूचे में

जिस ने देखा हो नज़र भर के तिरा हुस्न-ए-तमाम
कोई ऐसा भी है ऐ यार तिरे कूचे में

'आरज़ू' सा कभी देखा है कोई काफ़िर-ए-इश्क़
यूँ तो हैं सैंकड़ों दीं-दार तिरे कूचे में