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किस क़दर इज़्तिराब है यारो | शाही शायरी
kis qadar iztirab hai yaro

ग़ज़ल

किस क़दर इज़्तिराब है यारो

दानिश फ़राही

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किस क़दर इज़्तिराब है यारो
ज़िंदगी इक अज़ाब है यारो

दिल मिरा साफ़ आइने की तरह
एक सादा किताब है यारो

मैं हूँ नाकाम इश्क़ में लेकिन
क्या कोई कामयाब है यारो

जब से देखा है इस ने हँस के मुझे
दिल की हालत ख़राब है यारो

ग़म-ए-जानाँ तो राहत-ए-दिल है
फ़िक्र-ए-दुनिया अज़ाब है यारो

उस ने शायद किया है याद मुझे
दिल में क्यूँ इज़्तिराब है यारो

पूछते क्या हो उस का नक़्श-ओ-निगार
आप अपना जवाब है यारो

सुन सकूँगा न दास्तान-ए-इश्क़
अब कहाँ मुझ में ताब है यारो

क्या करेगा कोई ख़राब उसे
जो अज़ल से ख़राब है यारो

कुछ बताओ कि आज 'दानिश' पर
क्यूँ सितम बे-हिसाब है यारो