किस ने ग़म के जाल बिखेरे
सुब्ह अँधेरे शाम सवेरे
इस दुनिया में काम न आए
आँसू तेरे आँसू मेरे
रात की कैफ़िय्यत याद आई
शाम हुई है सुब्ह सवेरे
हुस्न का दामन फिर भी ख़ाली
इश्क़ ने लाखों अश्क बिखेरे
मुझ को दुनिया से क्या मतलब
दिल भी मेरा तुम भी मेरे
रंगीं रंगीं इश्क़ की राहें
मंज़िल मंज़िल हुस्न के डेरे
आज 'तबस्सुम' सब के लब पर
अफ़्साने हैं मेरे तेरे
ग़ज़ल
किस ने ग़म के जाल बिखेरे
सूफ़ी तबस्सुम