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किस मस्त अदा से आँख लड़ी मतवाला बना लहरा के गिरा | शाही शायरी
kis mast ada se aankh laDi matwala bana lahra ke gira

ग़ज़ल

किस मस्त अदा से आँख लड़ी मतवाला बना लहरा के गिरा

आरज़ू लखनवी

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किस मस्त अदा से आँख लड़ी मतवाला बना लहरा के गिरा
आगे तो हैं राहें और कठिन दिल पहले ही ठोकर खा के गिरा

आगे जो बढ़ा थर्राए क़दम वो हँस जो दिए शर्मा के गिरा
बेहोश नहीं होश्यार था मैं उठने का सहारा पा के गिरा

दिल शौक़ के जोश में दौड़ चला और जोश तो होता है अंधा
दर बंद पड़ा था क़िस्मत का टक्कर जो लगी त्योरा के गिरा

जितनी भी दिल की ज़रूरत थी बस उतनी ही हिम्मत-ओ-ताक़त थी
रस्ते की खखेड़ें झेल गया पास आते ही मैं चकरा के गिरा

क्या इश्क़ की मंज़िल भी है कड़ी बंध बंध कर हिम्मत टूट गई
जो एक क़दम चल कर सँभला वो दो क़दम आगे जा के गिरा

सुलगी हुई है ग़म की भट्टी दिल क्यूँ न पिघल के बने पानी
जो क़तरा आँसू हो के बहा लहरा के चला त्योरा के गिरा

वो नाला फ़लक से टकराया वो 'आरज़ू' इक तारा टूटा
दुश्मन की तरफ़ जो लपका था शोला वो मुझी पर आ के गिरा