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किस ख़ुशी की तलब नहीं दिल में | शाही शायरी
kis KHushi ki talab nahin dil mein

ग़ज़ल

किस ख़ुशी की तलब नहीं दिल में

ऐन सलाम

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किस ख़ुशी की तलब नहीं दिल में
दर्द कुछ बे-सबब नहीं दिल में

आप का इंतिज़ार है फिर भी
बेकली गो कि अब नहीं दिल में

ग़म-ए-दौराँ का हो हरा वर्ना
आप की याद कब नहीं दिल में

जाने क्या गुल खिलाए शाम-ए-बहार
हसरत-ए-ज़ुल्फ़-ओ-लब नहीं दिल में

कौन सी है वो आरज़ू कि 'सलाम'
आज भी तिश्ना-लब नहीं दिल में