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किस के सपनों से मिरी नींद सजी रहती है | शाही शायरी
kis ke sapnon se meri nind saji rahti hai

ग़ज़ल

किस के सपनों से मिरी नींद सजी रहती है

दिनेश नायडू

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किस के सपनों से मिरी नींद सजी रहती है
जागता हूँ तो इन आँखों में नमी रहती है

ढूँढता रहता हूँ बे-सुध मैं किसी माचिस को
एक सिगरेट मिरे होंटों से लगी रहती है

एक तस्वीर सलीक़े से रखी है घर में
बाक़ी हर चीज़ तो बस यूँ ही पड़ी रहती है

ऐसे आलम में जहाँ कोई नहीं कहता कुछ
ये सदाओं की फ़ज़ा कैसे बनी रहती है

ढलता जाता हूँ अँधेरों में मैं रफ़्ता-रफ़्ता
चाँदनी दूर कहीं दूर खड़ी रहती है

मैं तिरे पास ख़लाओं में पहुँच जाता हूँ
और इक लाश कहीं घर में पड़ी रहती है