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किस के जल्वों ने दिखाई वादी-ए-उल्फ़त मुझे | शाही शायरी
kis ke jalwon ne dikhai wadi-e-ulfat mujhe

ग़ज़ल

किस के जल्वों ने दिखाई वादी-ए-उल्फ़त मुझे

रऊफ़ यासीन जलाली

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किस के जल्वों ने दिखाई वादी-ए-उल्फ़त मुझे
खींचे है इक भोली-भाली साँवली सूरत मुझे

मय-कदे से उठ के कल मअ'बद में जा बैठा था मैं
ग़ैरों की मज्लिस में यारो ले गई वहशत मुझे

कटता है दिन उस के ही दिलकश ख़यालों में सदा
शब मिले है ख़्वाब में कोई परी-तलअत मुझे

हासिल-ए-उम्र-ए-रवाँ दाग़-ए-तमन्ना है फ़क़त
इश्क़-ए-नर्गिस में रही है ख़्वाहिश-ए-वसलत मुझे

ऐ 'जलाली' बारहा ढूँडा तुझे वीरानों में
कब मयस्सर होती है वहशी तिरी सोहबत मुझे