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किस के दिल में बसता हूँ | शाही शायरी
kis ke dil mein basta hun

ग़ज़ल

किस के दिल में बसता हूँ

हसनैन आक़िब

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किस के दिल में बसता हूँ
अक्सर सोचा करता हूँ

सतह के नीचे कुछ भी नहीं
कहने को मैं दरिया हूँ

ख़ुद को कभी मैं पा न सका
जाने कितना गहरा हूँ

आज भी शायद तू आए
ख़्वाब सजाए बैठा हूँ

रह कर अर्से तक बे-आब
मोती बन कर चमका हूँ

जाग रहा है दीवाना
और मैं सोया रहता हूँ