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किस के चमके चाँद से रुख़्सार क़ैसर-बाग़ में | शाही शायरी
kis ke chamke chand se ruKHsar qiasar-bagh mein

ग़ज़ल

किस के चमके चाँद से रुख़्सार क़ैसर-बाग़ में

अमीर मीनाई

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किस के चमके चाँद से रुख़्सार क़ैसर-बाग़ में
चाँदनी है साया-ए-दीवार क़ैसर-बाग़ में

फ़िल-हक़ीक़त ये भी कम गुलज़ार-ए-जन्नत से नहीं
हूरें फिरती हैं सर-ए-बाज़ार क़ैसर-बाग़ में

पाँव का याँ ज़िक्र कैसा साफ़ है ऐसी ज़मीं
दिल फिसलते हैं दम-ए-रफ़्तार क़ैसर-बाग़ में

ज़ेर-ए-शाख़-ए-गुल अगर सब्ज़ा कभी सोने लगा
शोर-ए-बुलबुल ने किया बेदार क़ैसर-बाग़ में

इतने पत्ते भी न होंगे गुलशन-ए-फ़िरदौस में
जिस क़दर फूलों के हैं अम्बार क़ैसर-बाग़ में

तिश्नगान-ए-शौक़ हैं शीरीं-लबों के मेहमाँ
बट रहा है शर्बत-ए-दीदार क़ैसर-बाग़ में

क़तरे शबनम के रग-ए-गुल पर दिखाते हैं बहार
गुँध रहे हैं मोतियों के हार क़ैसर-बाग़ में

साया-ए-बाल-ए-हुमा क्या ढूँढता है ऐ 'अमीर'
बैठ ज़ेर-ए-साया-ए-दीवार क़ैसर-बाग़ में