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किस अजब साअत-ए-नायाब में आया हुआ हूँ | शाही शायरी
kis ajab saat-e-nayab mein aaya hua hun

ग़ज़ल

किस अजब साअत-ए-नायाब में आया हुआ हूँ

इरफ़ान सत्तार

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किस अजब साअत-ए-नायाब में आया हुआ हूँ
तुझ से मिलने मैं तिरे ख़्वाब में आया हुआ हूँ

फिर वही मैं हूँ, वही हिज्र का दरिया-ए-अमीक़
कोई दम अक्स-ए-सर-ए-आब में आया हुआ हूँ

कैसे आईने के मानिंद चमकता हुआ मैं
इश्क़ के शहर-ए-अबद-ताब में आया हुआ हूँ

मेरी हर तान है अज़-रोज़-ए-अज़ल ता-ब-अबद
एक सुर के लिए मिज़राब में आया हुआ हूँ

कोई परछाईं कभी जिस्म से करती है कलाम?
बे-सबब साया-ए-महताब में आया हुआ हूँ

हर गुज़रते हुए लम्हे में टपकता हुआ में
दर्द हूँ, वक़्त के आसाब में आया हुआ हूँ

कैसी गहराई से निकला हूँ अदम की 'इरफ़ान'
कैसे पायाब से तालाब में आया हुआ हूँ