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किनारे तोड़ के बाहर निकल गया दरिया | शाही शायरी
kinare toD ke bahar nikal gaya dariya

ग़ज़ल

किनारे तोड़ के बाहर निकल गया दरिया

महेंद्र कुमार सानी

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किनारे तोड़ के बाहर निकल गया दरिया
लकीर छोड़ के ये किस तरफ़ चला दरिया

अब इस से पहले समुंदर से जा के मिल पाता
ख़ुद अपनी प्यास में ही ग़र्क़ हो गया दरिया

मिरे बदन का समुंदर तो ख़ुश्क होता गया
रवाँ दवाँ ही रहा मेरी सोच का दरिया

उसे कभी न समुंदर की जुस्तुजू होती
तहों में अपनी उतर कर जो देखता दरिया

ख़ुलूस है ये तो उस का कहाँ की मजबूरी
रिहाई का है समुंदर को रास्ता दरिया

उसे मैं दूर ही से देखता रहा 'सानी'
जो आज पानी में उतरा हूँ तो खुला दरिया