किनारे पर समुंदर डूबते हैं
चलो कुछ और अंदर डूबते हैं
उसे हम रास्ता कहते हैं अपना
जहाँ लश्कर के लश्कर डूबते हैं
तिरे शाने को दरिया छू रहा है
हमारे तो यहाँ सर डूबते हैं
तिरी ग़ज़लों को पढ़ कर सोचता हूँ
तिरी आँखों में मंज़र डूबते हैं
तिरी क़ुर्बत सबब है डूबने का
किनारे पर बने घर डूबते हैं
वहाँ मंज़ूर हम को तैरना है
जहाँ अक्सर सुखनवर डूबते हैं

ग़ज़ल
किनारे पर समुंदर डूबते हैं
मंज़ूर देपालपुरी