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कीना जो तिरे दिल में भरा है सो किधर जाए | शाही शायरी
kina jo tere dil mein bhara hai so kidhar jae

ग़ज़ल

कीना जो तिरे दिल में भरा है सो किधर जाए

मोहम्मद अमान निसार

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कीना जो तिरे दिल में भरा है सो किधर जाए
मुमकिन है कहीं संग के पहलू से शरर जाए

तड़पूँ हूँ तमाशे को मिरे हट के खड़ा हो
दामन को सँभाल अपने मिरे ख़ूँ से न भर जाए

कहता है कोई बर्क़ कोई शोला-ए-आतिश
इक दम तू ठहर जाए तो इक बात ठहर जाए

मत मुँह से 'निसार' अपने को ऐ जान बुरा कह
है साहब-ए-ग़ैरत कहीं कुछ खा के न मर जाए