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कीजिए रिंदी का पेशा शीशा शीशा है शराब | शाही शायरी
kijiye rindi ka pesha shisha shisha hai sharab

ग़ज़ल

कीजिए रिंदी का पेशा शीशा शीशा है शराब

जोशिश अज़ीमाबादी

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कीजिए रिंदी का पेशा शीशा शीशा है शराब
लीजिए इक घूँट शीशा शीशा शीशा है शराब

शीशा-ए-ख़ाली न देखा साक़िया कुछ ग़म नहीं
ताक के रेशा-ब-रेशा शीशा शीशा है शराब

जल्वा-ए-मस्ताना से शीरीं के हर इक अंग में
ग़ौर से टुक देख तेशा शीशा शीशा है शराब

उस शिकार-अफ़्गन की चश्म-ए-मस्त से ले मय-कशो
हो गया मय-ख़ाना बेशा शीशा शीशा है शराब

मिस्रा-ए-'सर्वत' ने 'जोशिश' मस्त ओ दीवाना किया
दश्त-दर-दश्त बेशा बेशा शीशा शीशा है शराब