की तू ने लब-कुशाई तो किस के हुज़ूर की
अब किर्चियाँ समेट दिल-ए-ना-सुबूर की
किस के लह्हू में शाम नहा कर है सुर्ख़-रू
किस ने चुकाई ख़ून से क़ीमत ग़ुरूर की
सदियों से किस की क़ब्र पे गिर्या-कुनाँ है रात
लेटा है कौन ओढ़ के चादर ये नूर की
इल्म-ओ-कमाल आप की मीरास क्या कहा
परतें न खोलिए मेरे तहतुश-शुऊर की
तक़दीर जितना चाहे मुझे दर-ब-दर करे
मिट्टी से ख़ू न जाएगी बुर्हान-पूर की
फिर बा-अदब हैं लफ़्ज़-ओ-मआनी मिरे हुज़ूर
फिर फ़ौज उतर रही है ख़याल-ए-तुयूर की
तफ़्हीम आँ-जनाब ये 'ग़ालिब' का शेर है
कुछ अन-कही बताइए बैनस्सुतूर की
हम ख़ुद से हम-कलाम होए कम नहीं 'नदीम'
जावें कलीम सैर करें कोह-ए-तूर की
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ग़ज़ल
की तू ने लब-कुशाई तो किस के हुज़ूर की
नदीम फ़ाज़ली