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किधर का था किधर का हो गया हूँ | शाही शायरी
kidhar ka tha kidhar ka ho gaya hun

ग़ज़ल

किधर का था किधर का हो गया हूँ

आज़िम कोहली

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किधर का था किधर का हो गया हूँ
मुसाफ़िर किस सफ़र का हो गया हूँ

ख़ुदा उस को सदा पुर-नूर रक्खे
मैं तारा जिस नज़र का हो गया हूँ

धरे जाएँगे सब इल्ज़ाम मुझ पर
मैं हिस्सा हर ख़बर का हो गया हूँ

मुझे अय्यारियाँ सब आ गई हैं
मैं अब तेरे नगर का हो गया हूँ

तिरी नज़रों के इक फ़रमान ही से
मैं क़ैदी उम्र भर का हो गया हूँ

मुझे अब इश्क़ मिट्टी से नहीं है
मैं आशिक़ माल-ओ-ज़र का हो गया हूँ

रिवायत छोड़ बैठा हूँ मैं अपनी
मैं दुश्मन अपने घर का हो गया हूँ

वो जिस को शाएरी कहते हैं 'आज़िम'
मैं घायल उस हुनर का हो गया हूँ