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ख़्वाहिश हमारे ख़ून की लबरेज़ अब भी है | शाही शायरी
KHwahish hamare KHun ki labrez ab bhi hai

ग़ज़ल

ख़्वाहिश हमारे ख़ून की लबरेज़ अब भी है

इक़बाल अशहर कुरेशी

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ख़्वाहिश हमारे ख़ून की लबरेज़ अब भी है
कुछ नर्म पड़ गई है मगर तेज़ अब भी है

इस ज़िंदगी के साथ बुज़ुर्गों ने दी हमें
इक ऐसी मस्लहत जो शर-अंगेज़ अब भी है

हालाँकि इज़्तिराब है ज़ाहिर सुकून से
क्या कीजे उस का लहजा दिल-आवेज़ अब भी है

मुद्दत हुई शबाब के चर्चे थे शहर में
वो ज़ाफ़रानी रंग सितम-ख़ेज़ अब भी है

'अशहर' बहुत सी पत्तियाँ शाख़ों से छिन गईं
तफ़्सीर क्या करें कि हवा तेज़ अब भी है