ख़्वाहिश-ए-मेवा-ए-तर हो ये ज़रूरी तो नहीं
हर कोई ख़ुल्द-बदर हो ये ज़रूरी तो नहीं
तेशा-ए-ग़म को सनम-साज़ी-ए-हस्ती से ग़रज़
संग वाबस्ता-ए-दर हो ये ज़रूरी तो नहीं
मैं हूँ आलूदा ब-ख़ून-ए-जिगर-ओ-ख़ाक-ए-जहाँ
वो तिरी राहगुज़र हो ये ज़रूरी तो नहीं
कुछ जमाल-ए-कम-ओ-कज-बीनी-ए-ख़ुश-चश्म भी है
सब तिरा हुस्न-ए-नज़र हो ये ज़रूरी तो नहीं
ऐ हुनर-मंद-ए-जराहत तलब-ए-ख़ामा तुझे
दावा-ए-ज़ख़्म-ए-हुनर हो ये ज़रूरी तो नहीं
रांदा-ए-हल्का-ए-आग़ोश पस अंदेश-ए-जमाल
तेरा मंज़ूर-ए-नज़र हो ये ज़रूरी तो नहीं
लफ़्ज़-ए-सिर में मिरे एराब तराज़-ए-मुख़्लिस
ज़ेर की जा पे ज़बर हो ये ज़रूरी तो नहीं
ये भी मलज़ूम नहीं तो हो गिरफ़्तार-ए-ख़िरद
मुझ को भी अपनी ख़बर हो ये ज़रूरी तो नहीं
बाद-ए-तक़रीब-ए-तमन्नाई-ए-नज़्जारा-ए-तूर
ताक़त-ओ-ताब-ए-नज़र हो ये ज़रूरी तो नहीं
आलम-ए-बे-ख़ुदी-ए-इशरत-ए-बे-ग़ायत है
रूह मसरूर मगर हो ये ज़रूरी तो नहीं
है मय-ए-शौक़ में आमेज़िश-ए-तलख़ाब-ए-गुमाँ
फिर भी तख़फ़ीफ़-ए-असर हो ये ज़रूरी तो नहीं
दिल ब-अफ़्ज़ाइश-ए-ख़ुद्दारी-ए-आहंग-ए-सुख़न
ख़ाएफ़-ए-अहल-ए-नज़र हो ये ज़रूरी तो नहीं
पीरी-ए-इश्क़ से हूँ सेहत-ए-मा'शूक़-शिकार
दिल तवाना-ए-जिगर हो ये ज़रूरी तो नहीं
सूरत-ए-क़ुर्ब-ए-मुसलसल भी निकल सकती है
बाम पर उम्र बसर हो ये ज़रूरी तो नहीं
बस कि इक वसवसा-ए-बर्ग-ए-ख़िज़ाँ-दीदा है
ख़ुल्द-ए-इम्काँ में शजर हो ये ये ज़रूरी तो नहीं
इंहिसार-ए-ग़म-ए-हस्ती ब-ग़म-ए-मर्ग-ए-हवस
'हादिस'-ए-ख़ाक-बसर हो ये ज़रूरी तो नहीं

ग़ज़ल
ख़्वाहिश-ए-मेवा-ए-तर हो ये ज़रूरी तो नहीं
हादिस सलसाल