ख़्वाहिश-ए-बाल-ओ-पर में रहता है
मुतमइन कौन घर में रहता है
लम्हा लम्हा सफ़र में रहता है
चाँद कब किस नगर में रहता है
जान-ए-जाँ आज-कल तिरा क़ातिल
कूचा-ए-चारा-गर में रहता है
भूल जाऊँ उसे मगर कैसे
वो जो मेरी नज़र में रहता है
हम तो सहरा-नवर्द हैं 'मंज़र'
ख़ौफ़ दीवार-ओ-दर में रहता है

ग़ज़ल
ख़्वाहिश-ए-बाल-ओ-पर में रहता है
जावेद मंज़र