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ख़्वाबों की काएनात में खोने नहीं दिया | शाही शायरी
KHwabon ki kaenat mein khone nahin diya

ग़ज़ल

ख़्वाबों की काएनात में खोने नहीं दिया

काशिफ़ रफ़ीक़

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ख़्वाबों की काएनात में खोने नहीं दिया
तेरे ख़याल ने मुझे सोने नहीं दिया

गर्दिश में रक्खा तेरी कशिश ने मुझे सदा
अब तक किसी ठिकाने का होने नहीं दिया

हर मा'रके से ज़ीस्त के निकला हूँ सुर्ख़-रू
बस ये कि दिल में ख़ौफ़ समोने नहीं दिया

ज़ख़्मों से था निढाल मगर मौज-ए-वक़्त को
चाहत का नक़्श सीने से धोने नहीं दिया

इक हादसे की याद ने दिल की ज़मीन में
ख़्वाहिश का तुख़्म फिर कभी बोने नहीं दिया

'काशिफ़' कमाल-ए-ज़ब्त ने रक्खा मिरा भरम
ज़ालिम के सामने मुझे रोने नहीं दिया