ख़्वाबों के साथ ज़ेहन की अंगड़ाइयाँ भी हैं
इक रौशनी भी है कई परछाइयाँ भी हैं
ये काएनात ख़ुद भी है इक पैकर-ए-जमील
और कुछ तिरे जमाल की रानाइयाँ भी हैं
डूबा हुआ हूँ क़ुल्ज़ुम-ए-आलाम में मगर
ज़ेर-ए-क़दम हयात की परछाइयाँ भी हैं
जादू जगाती रात के सायों के आस-पास
लर्ज़ां तुम्हारी याद की पहनाईयाँ भी हैं
आता नहीं शबाब यूँही काएनात पर
मसरूफ़ कार-ए-इश्क़ की बरनाइयाँ भी हैं
शाम-ए-बला न मुझ से चुरा इस तरह निगाह
तन्हा नहीं हूँ मैं मिरी तन्हाइयाँ भी हैं
हैं तेरी अंजुमन में हमें इक फ़सुर्दा-दिल
लेकिन हमीं से अंजुमन-आराइयाँ भी हैं
'हुर्मत' फ़क़त बुलंदी-ए-एहसास ही नहीं
मेरी तलब में रूह की गहराइयाँ भी हैं
ग़ज़ल
ख़्वाबों के साथ ज़ेहन की अंगड़ाइयाँ भी हैं
हुरमतुल इकराम