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ख़्वाबों का सैलाब नहीं देखा जाता | शाही शायरी
KHwabon ka sailab nahin dekha jata

ग़ज़ल

ख़्वाबों का सैलाब नहीं देखा जाता

इम्तियाज़ ख़ान

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ख़्वाबों का सैलाब नहीं देखा जाता
नींद-नगर ग़र्क़ाब नहीं देखा जाता

जाने वाले मेरी आँखें भी ले जा
इन को यूँ बेताब नहीं देखा जाता

इतना कह कर एक शनावर डूब गया
अफ़्सुर्दा गिर्दाब नहीं देखा जाता

जाने उस का चेहरा कैसे देखेंगे
जिस का नूर-नक़ाब नहीं देखा जाता

हम ने सारा गुलशन जलते देखा है
तुम से एक गुलाब नहीं देखा जाता