ख़्वाबों का सैलाब नहीं देखा जाता
नींद-नगर ग़र्क़ाब नहीं देखा जाता
जाने वाले मेरी आँखें भी ले जा
इन को यूँ बेताब नहीं देखा जाता
इतना कह कर एक शनावर डूब गया
अफ़्सुर्दा गिर्दाब नहीं देखा जाता
जाने उस का चेहरा कैसे देखेंगे
जिस का नूर-नक़ाब नहीं देखा जाता
हम ने सारा गुलशन जलते देखा है
तुम से एक गुलाब नहीं देखा जाता
ग़ज़ल
ख़्वाबों का सैलाब नहीं देखा जाता
इम्तियाज़ ख़ान