ख़्वाब उस के हैं जो चुरा ले जाए
नींद उस की है जो उड़ा ले जाए
ज़ुल्फ़ उस की है जो उसे छू ले
बात उस की है जो बना ले जाए
तेग़ उस की है शाख़-ए-गुल उस की
जो उसे खींचता हुआ ले जाए
उस से कहना कि क्या नहीं उस पास
फिर भी दरवेश की दुआ ले जाए
ज़ख़्म हो तो कोई दुहाई दे
तीर हो तो कोई उठा ले जाए
क़र्ज़ हो तो कोई अदा कर दे
हाथ हो तो कोई छुड़ा ले जाए
लौ दिए की निगाह में रखना
जाने किस सम्त रास्ता ले जाए
दिल में आबाद हैं जो सदियों से
उन बुतों को कहाँ ख़ुदा ले जाए
कब न जाने उबल पड़े चश्मा
कब ये सहरा मुझे बहा ले जाए
ख़्वाब ऐसा कि देखते रहिए
याद ऐसी कि हाफ़िज़ा ले जाए
मैं ग़रीब-उद-दयार मेरा क्या
मौज ले जाए या हवा ले जाए
ख़ाक होना ही जब मुक़द्दर है
अब जहाँ बख़्त-ए-ना-रसा ले जाए
ग़ज़ल
ख़्वाब उस के हैं जो चुरा ले जाए
रसा चुग़ताई