ख़्वाब ओ ताबीर-ए-बे-निशाँ मैं था
एक रूदाद-ए-राएगाँ मैं था
दो तरफ़ था हुजूम सदियों का
एक लम्हा सा दरमियाँ मैं था
बहते पानी पे जिस की थी बुनियाद
ख़ाम मिट्टी का वो मकाँ मैं था
मैं वहाँ हूँ जहाँ नहीं कोई
कुछ नहीं था जहाँ वहाँ मैं था
सूरत-ए-नुक़्ता-ए-हुबाब 'एजाज़'
महरम-ए-बहर-ए-बेकराँ मैं था
ग़ज़ल
ख़्वाब ओ ताबीर-ए-बे-निशाँ मैं था
एजाज़ आज़मी