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ख़्वाब-ओ-ख़याल हो गए याराने किस तरह | शाही शायरी
KHwab-o-KHayal ho gae yarane kis tarah

ग़ज़ल

ख़्वाब-ओ-ख़याल हो गए याराने किस तरह

इक़बाल हैदरी

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ख़्वाब-ओ-ख़याल हो गए याराने किस तरह
पल-भर में लोग बन गए अनजाने किस तरह

क्यूँ कर ख़ुलूस-ओ-शौक़ में बदलेंगी नफ़रतें
ये फ़ासले मिटेंगे ख़ुदा-जाने किस तरह

बोलो ज़बाँ से तुम न कोई गुफ़्तुगू करो
दिल का तुम्हारे हाल कोई जाने किस तरह

मैं किया कि एक चेहरा हूँ जम्म-ए-ग़फ़ीर में
वो मुझ को इस हुजूम में पहचाने किस तरह

मजनूँ तो एक नाम था गर्द-ओ-ग़ुबार का
दिल में बसा लिया उसे लैला ने किस तरह

ख़ुद अपने ही वजूद से वहशत-ज़दा हैं लोग
आबादियों में आ गए वीराने किस तरह

इक़बाल तुम ने जो भी कहा सच कहा मगर
सच बात भी तुम्हारी कोई माने किस तरह