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ख़्वाब ने रख लिया फ़साने में | शाही शायरी
KHwab ne rakh liya fasane mein

ग़ज़ल

ख़्वाब ने रख लिया फ़साने में

इसहाक़ विरदग

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ख़्वाब ने रख लिया फ़साने में
तुम ने ताख़ीर की जगाने में

इस ज़मीं को फ़लक बनाने में
मैं भी शामिल था इक ज़माने में

तेरे किरदार को उठाने में
मुझ को मरना पड़ा फ़साने में

काम करते हैं रोज़-ओ-शब साहब
हम मोहब्बत के कार-ख़ाने में

बाम-ओ-दर दुश्मनों के साथी थे
मुझ को दीवार से लगाने में

इश्क़ में थोड़ी सी सुहुलत थी
हज़रत-ए-क़ैस के ज़माने में

दीन-ओ-दुनिया से जाना पड़ता है
दिल को दीवानगी बनाने में

वक़्त ही हर तरफ़ रुकावट है
ला-मकाँ से मकाँ बनाने में

आग के दरमियान बैठे हैं
क़िस्सा-ख़्वानी के चाए-ख़ाने में

मकतब-ए-इश्क़ में सबक़ पढ़ने
लोग आएँगे हर ज़माने में