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ख़्वाब में भी न कभी उन से मुलाक़ात हुई | शाही शायरी
KHwab mein bhi na kabhi un se mulaqat hui

ग़ज़ल

ख़्वाब में भी न कभी उन से मुलाक़ात हुई

लक्ष्मी नारायण फ़ारिग़

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ख़्वाब में भी न कभी उन से मुलाक़ात हुई
हमें हासिल न कभी वज्ह-ए-मुबाहात हुई

फ़िक्र-ए-फ़र्दा है कभी रंज-ओ-ग़म-ए-दोश कभी
किस क़दर रूह-ए-बशर मोरिद-ए-आफ़ात हुई

ख़स्ता-हाली पे मिरी उन को भी रोना आया
बा'द-ए-मुद्दत मिरे वीराने में बरसात हुई

वज्ह-ए-आशोब-ए-तमन्ना हुआ फ़िक्र-ए-जन्नत
वज्ह-ए-आसूदगी-ए-रूह मुनाजात हुई

तिश्नगी मिट न सकी काम-ओ-दहन की 'फ़ारिग़'
ज़िंदगी मुफ़्त में मरहून-ए-ख़राबात हुई