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ख़्वाब की हालातों के साथ तेरी हिकायतों में हैं | शाही शायरी
KHwab ki haalaton ke sath teri hikayaton mein hain

ग़ज़ल

ख़्वाब की हालातों के साथ तेरी हिकायतों में हैं

जौन एलिया

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ख़्वाब की हालातों के साथ तेरी हिकायतों में हैं
हम भी दयार-ए-अहल-ए-दिल तेरी रिवायतों में हैं

वो जो थे रिश्ता-हा-ए-जाँ टूट सके भला कहाँ
जान वो रिश्ता-हा-ए-जाँ अब भी शिकायतों में हैं

एक ग़ुबार है कि है दायरा-वार पुर-फ़िशाँ
क़ाफ़िला-हा-ए-कहकशाँ तंग हैं वहशतों में हैं

वक़्त की दरमियानियाँ कर गईं जाँ-कनी को जाँ
वो जो अदावतें कि थीं आज मोहब्बतों में हैं

परतव-ए-रंग है कि है दीद में जाँ-नशीन-ए-रंग
रंग कहाँ हैं रूनुमा रंग तो निकहतों में हैं

है ये वजूद की नुमूद अपनी नफ़स नफ़स गुरेज़
वक़्त की सारी बस्तियाँ अपनी हज़ीमतों में हैं

गर्द का सारा ख़ानुमाँ है सर-ए-दश्त-ए-बे-अमाँ
शहर हैं वो जो हर तरह गर्द की ख़िदमतों में हैं

वो दिल ओ जान सूरतें जैसे कभी न थीं कहीं
हम उन्हीं सूरतों के हैं हम उन्हीं सूरतों में हैं

मैं न सुनूँगा माजरा मा'रका-हा-ए-शौक़ का
ख़ून गए हैं राएगाँ रंग नदामतों में हैं