ख़्वाब के रंग दिल-ओ-जाँ में सजाए भी गए
फिर वही रंग ब-सद तौर जलाए भी गए
उन्हीं शहरों को शिताबी से लपेटा भी गया
जो अजब शौक़-ए-फ़राख़ी से बिछाए भी गए
बज़्म शोख़ी का किसी की कहें क्या हाल-ए-जहाँ
दिल जलाए भी गए और बुझाए भी गए
पुश्त मिट्टी से लगी जिस में हमारी लोगो
उसी दंगल में हमें दाव सिखाए भी गए
याद-ए-अय्याम कि इक महफ़िल-ए-जाँ थी कि जहाँ
हाथ खींचे भी गए और मिलाए भी गए
हम कि जिस शहर में थे सोग-नशीन-ए-अहवाल
रोज़ इस शहर में हम धूम मचाए भी गए
याद मत रखियो ये रूदाद हमारी हरगिज़
हम थे वो ताज-महल 'जौन' जो ढाए भी गए
ग़ज़ल
ख़्वाब के रंग दिल-ओ-जाँ में सजाए भी गए
जौन एलिया