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ख़्वाब के रंग दिल-ओ-जाँ में सजाए भी गए | शाही शायरी
KHwab ke rang dil-o-jaan mein sajae bhi gae

ग़ज़ल

ख़्वाब के रंग दिल-ओ-जाँ में सजाए भी गए

जौन एलिया

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ख़्वाब के रंग दिल-ओ-जाँ में सजाए भी गए
फिर वही रंग ब-सद तौर जलाए भी गए

उन्हीं शहरों को शिताबी से लपेटा भी गया
जो अजब शौक़-ए-फ़राख़ी से बिछाए भी गए

बज़्म शोख़ी का किसी की कहें क्या हाल-ए-जहाँ
दिल जलाए भी गए और बुझाए भी गए

पुश्त मिट्टी से लगी जिस में हमारी लोगो
उसी दंगल में हमें दाव सिखाए भी गए

याद-ए-अय्याम कि इक महफ़िल-ए-जाँ थी कि जहाँ
हाथ खींचे भी गए और मिलाए भी गए

हम कि जिस शहर में थे सोग-नशीन-ए-अहवाल
रोज़ इस शहर में हम धूम मचाए भी गए

याद मत रखियो ये रूदाद हमारी हरगिज़
हम थे वो ताज-महल 'जौन' जो ढाए भी गए