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ख़्वाब का अक्स कहाँ ख़्वाब की ता'बीर में है | शाही शायरी
KHwab ka aks kahan KHwab ki tabir mein hai

ग़ज़ल

ख़्वाब का अक्स कहाँ ख़्वाब की ता'बीर में है

उरूज ज़ैदी बदायूनी

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ख़्वाब का अक्स कहाँ ख़्वाब की ता'बीर में है
मुझ को मा'लूम है जो कुछ मिरी तक़दीर में है

मेरी रूदाद-ए-मोहब्बत को न सुनने वाले
तुझ में वो बात कहाँ जो तिरी तस्वीर में है

पैकर-ए-ख़ाक भी हूँ बाइ'स-ए-कौनैन भी हूँ
कितना ईजाज़ नुमायाँ मिरी तफ़्सीर में है

फूल बन कर भी ये एहसास शगूफ़े को नहीं
मेरी तख़रीब का पहलू मिरी ता'मीर में है

हुस्न के साथ तुझे हुस्न-ए-वफ़ा भी मिलता
इसी हल्क़े की ज़रूरत तिरी ज़ंजीर में है

वुसअ'त-ए-दामन-ए-रहमत की क़सम खाता हूँ
उज़्र-ए-तक़्सीर भी दाख़िल-ए-हद-ए-तक़्सीर में है

एक तहदार ये मिस्रा है जवाब-ए-ख़त में
किस क़दर शोख़-बयानी तिरी तहरीर में है

क्या तमाशा है ये ऐ पा-ए-जुनून-ए-रुस्वा
कभी ज़ंजीर से बाहर कभी ज़ंजीर में है

जाने कब उस पे उजाले को तरस आएगा
वो सियह-पोश फ़ज़ा जो मिरी तक़दीर में है

गुफ़्तुगू होती है अक्सर शब-ए-तन्हाई में
एक ख़ामोश तकल्लुम तिरी तस्वीर में है

मेरी नज़रों में यही हुस्न-ए-तग़ज़्ज़ुल है 'उरूज'
शेर-गोई का मज़ा पैरवी-ए-'मीर' में है