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ख़्वाब बर्फ़ानी चिता है | शाही शायरी
KHwab barfani chita hai

ग़ज़ल

ख़्वाब बर्फ़ानी चिता है

इक़बाल ख़ुसरो क़ादरी

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ख़्वाब बर्फ़ानी चिता है
धूप में रक्खा हुआ है

हम को पत्थर जानते हो
ख़ैर अपना भी ख़ुदा है

मेरे दुख सुख का तमस्ख़ुर
सब का ज़ाती मसअला है

एक सन्नाटा है दिल में
एक नय में गूँजता है

मैं नहीं मिलता किसी से
बंद फाटक बोलता है

सख़्त अर्ज़ां हैं दुआएँ
बेश-क़ीमत बद-दुआ है

जेब में बारा बजे हैं
ज़ाइचा अच्छा बना है

सिर्फ़ उस के दर से उम्मीद
सिर्फ़ अपना आसरा है

फूल सी नन्ही हथेली
वक़्त पत्थर तोड़ता है