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ख़ून उतर आया दिल के छालों में | शाही शायरी
KHun utar aaya dil ke chhaalon mein

ग़ज़ल

ख़ून उतर आया दिल के छालों में

असलम बदर

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ख़ून उतर आया दिल के छालों में
बन रहे थे महल ख़यालों में

जागते जागते चढ़ा सूरज
आँख दुखने लगी उजालों में

पंछियों हिजरतों की रुत आई
बर्फ़ जमने लगी है बालों में

भूक ने खींच दी हैं दीवारें
हम-निवालों में हम-पियालों में

मर्सिया इस सदी का लिखना है
और दो तीन चार सालों में

बजने वाली है आख़िरी घंटी
हम हैं उलझे हुए सवालों में

पानियों की सियासतें 'असलम'
मछलियाँ मुतमइन हैं जालों में