ख़ून थूकेगी ज़िंदगी कब तक
याद आएगी अब तिरी कब तक
जाने वालों से पूछना ये सबा
रहे आबाद दिल-गली कब तक
हो कभी तो शराब-ए-वस्ल नसीब
पिए जाऊँ मैं ख़ून ही कब तक
दिल ने जो उम्र-भर कमाई है
वो दुखन दिल से जाएगी कब तक
जिस में था सोज़-ए-आरज़ू उस का
शब-ए-ग़म वो हवा चली कब तक
बनी-आदम की ज़िंदगी है अज़ाब
ये ख़ुदा को रुलाएगी कब तक
हादिसा ज़िंदगी है आदम की
साथ देगी भला ख़ुशी कब तक
है जहन्नुम जो याद अब उस की
वो बहिश्त-ए-वजूद थी कब तक
वो सबा उस के बिन जो आई थी
वो उसे पूछती रही कब तक
मीर-'जौनी' ज़रा बताएँ तो
ख़ुद में ठहरेंगे आप ही कब तक
हाल-ए-सहन-ए-वजूद ठहरेगा
तेरा हंगाम-ए-रुख़्सती कब तक
ग़ज़ल
ख़ून थूकेगी ज़िंदगी कब तक
जौन एलिया