ख़ून पत्तों पे जमा हो जैसे
फूल का रंग हरा हो जैसे
बारहा ये हमें महसूस हुआ
दर्द सीने का ख़ुदा हो जैसे
यूँ तरस खा के न पूछो अहवाल
तीर सीने पे लगा हो जैसे
फूल की आँख में शबनम क्यूँ है
सब हमारी ही ख़ता हो जैसे
किर्चें चुभती हैं बहुत सीने में
आइना टूट गया हो जैसे
सब हमें देखने आते हैं मगर
नींद आँखों से ख़फ़ा हो जैसे
अब चराग़ों की ज़रूरत भी नहीं
चाँद इस दिल में छुपा हो जैसे
रोज़ आती थी हुआ उस की तरह
अब वो आया तो हवा हो जैसे
ग़ज़ल
ख़ून पत्तों पे जमा हो जैसे
बशीर बद्र