ख़ून किस किस का हुआ सदक़े तिरी तलवार पर
फ़स्ल-ए-गुल धब्बे हैं लाखों दामन-ए-गुलज़ार पर
अब रहा दिल ता-क़यामत अबरू-ए-ख़म-दार पर
क्या हटेगा वो जो गर्दन रख चुका तलवार पर
फ़स्ल-ए-गुल रुख़्सत हुई रो लीजिए गुलज़ार पर
बस यही दो-तीन पंखुड़ियाँ हैं या दो-चार पर
वस्ल-ए-फुर्क़त की शबें दोनों में नींद आती नहीं
हँस रहा हूँ रो रहा हूँ ताला'-ए-बेदार पर
इंतिहा पर इश्क़ आ कर हो गया है ऐन हुस्न
मौत की भी आँख पड़ती है तिरे बीमार पर
वस्ल से मायूस हो कर काम मेरा बन गया
सैकड़ों इक़रार सदक़े हो गए इंकार पर
मैं नहीं लाखों पड़े हैं मुड़ के पीछे देखिए
नक़्श-ए-पा ग़श खा गए हैं शोख़ी-ए-रफ़्तार पर
दाग़ वालों के नशेमन शब को भी छुपते नहीं
धूप सी फैली हुई है बाग़ की दीवार पर
गर्दनें वो ख़म किए हैं जिन के सर हैं बार-ए-ख़ूँ
तू अगर ख़ुद-बीं नहीं डाल इक नज़र तलवार पर
अश्क-रेज़ान-ए-चमन से ख़ंदा-ए-गुल दब गया
ओस पड़ती है नई हर शब सर-ए-गुलज़ार पर
एक इक रग दे रही है लौ वुफ़ूर-ए-सोज़ से
नाज़ है 'साक़िब' को अपने ख़िलअत-ए-ज़र-तार पर

ग़ज़ल
ख़ून किस किस का हुआ सदक़े तिरी तलवार पर
साक़िब लखनवी