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ख़ूँ-गिरफ़्ता हो तो ख़ंजर का बदन दुखता है | शाही शायरी
KHun-girafta ho to KHanjar ka badan dukhta hai

ग़ज़ल

ख़ूँ-गिरफ़्ता हो तो ख़ंजर का बदन दुखता है

जमुना प्रसाद राही

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ख़ूँ-गिरफ़्ता हो तो ख़ंजर का बदन दुखता है
पंजा-ए-ख़ैर में ही शर का बदन दुखता है

पैकर-ए-नीम-शिकस्ता हूँ करो तेशा-ज़नी
बारिश-ए-गुल से ये पत्थर का बदन दुखता है

कौन है तुझ सा जो बाँटे मिरी दिन भर की थकन
मुज़्महिल रात है बिस्तर का बदन दुखता है

मुस्तक़िल शोरिश-ए-तूफ़ाँ से रगें टूटती हैं
ज़ब्त-ए-पैहम से समुंदर का बदन दुखता है

ज़ख़्म-ख़ुर्दा दर ओ दीवार की हालत है अजब
सिर्फ़ आहट से मिरे घर का बदन दुखता है

क़ीमत-ए-जाँ की तवक़्क़ो कफ़-ए-क़ातिल से कहाँ
ख़ूँ-बहा ये है कि ख़ंजर का बदन दुखता है

दर्द मौजों की रिफ़ाक़त का बड़ा है शायद
क़ुर्ब-ए-साहिल से शनावर का बदन दुखता है