ख़ून-ए-नाहक़ थी फ़क़त दुनिया-ए-आब-ओ-गिल की बात 
ये है महशर क्यूँ यहाँ हो दामन-ए-क़ातिल की बात 
आज क्यूँ अश्कों में है अक्स-ए-तबस्सुम जल्वा-गर 
आ गई क्या अपनी हद पर ग़म के मुस्तक़बिल की बात 
हर नज़र रंगीनी-ए-रुख़ तक पहुँच कर रह गई 
फूल अब किस से कहें गुलशन में ज़ख़्म-ए-दिल की बात 
देखते ही रह गए क़ानून-ए-क़ुदरत अहल-ए-ज़ब्त 
ले उड़ी ख़ाकिस्तर-ए-परवाना जब महफ़िल की बात 
नाख़ुदा हम और तूफ़ाँ से करें फ़िक्र-ए-फ़रार 
हम कभी करते नहीं साहिल पे भी साहिल की बात 
हो न जाए फिर शुऊ'र-ए-कारवाँ नज़्र-ए-फ़रेब 
छेड़ दी है राहबर ने आज फिर मंज़िल की बात 
कोई अपना है न कोई हमदम-ओ-दर्द-आश्ना 
ऐ ख़ुदा किस से कहे 'एजाज़' अपने दिल की बात
        ग़ज़ल
ख़ून-ए-नाहक़ थी फ़क़त दुनिया-ए-आब-ओ-गिल की बात
एजाज़ वारसी

