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ख़ून-ए-एहसास को मौजों की रवानी समझे | शाही शायरी
KHun-e-ehsas ko maujon ki rawani samjhe

ग़ज़ल

ख़ून-ए-एहसास को मौजों की रवानी समझे

मुमताज़ राशिद

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ख़ून-ए-एहसास को मौजों की रवानी समझे
अश्क-ए-गुल-रंग थे वो हम जिन्हें पानी समझे

कौन करता है ख़राबों में दफ़ीनों की तलाश
किस को फ़ुर्सत है जो ज़ख़्मों के मआनी समझे

कैसे मिट जाती है आँखों से वफ़ा की तहरीर
आज उड़ते हुए रंगों की ज़बानी समझे

जब भी देखा है उसे हम ने नए ज़ख़्म मिले
कौन उस शख़्स की तस्वीर पुरानी समझे

आँच थी अपने सुलगते हुए ग़म की 'राशिद'
लोग जिस को हुनर-ए-शोला-बयानी समझे