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ख़ून-ए-दिल से रह-ए-हस्ती को फ़रोज़ाँ कर लें | शाही शायरी
KHun-e-dil se rah-e-hasti ko farozan kar len

ग़ज़ल

ख़ून-ए-दिल से रह-ए-हस्ती को फ़रोज़ाँ कर लें

सत्यपाल जाँबाज़

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ख़ून-ए-दिल से रह-ए-हस्ती को फ़रोज़ाँ कर लें
मो'तबर और भी हम जश्न-ए-गुलिस्ताँ कर लें

दौर पर दौर चले जाम को रक़्साँ कर लें
दोस्तों आओ इलाज-ए-ग़म-ए-दौराँ कर लें

इक नए रंग से तज़ईन-ए-गुलिस्ताँ कर लें
लाख हो दौर-ए-ख़िज़ाँ जश्न-ए-बहाराँ कर लें

फिर न छट जाएँ कहीं रंज-ओ-मेहन के बादल
अपनी ज़ुल्फ़ों को ज़रा आप परेशाँ कर लें

शम्अ' फिर हसरत-ओ-अरमान की रौशन कर के
चंद लम्हों को सही जश्न-ए-चराग़ाँ कर लें

जुस्तुजू और नई बहर-ए-हुसूल-ए-मंज़िल
अपनी रफ़्तार सू-ए-ख़ार-ए-मुग़ीलाँ कर लें

ग़म-ए-दौराँ को ऐ 'जाँबाज़' भुलाने के लिए
आओ मयख़ाने में तफ़रीह का सामाँ कर लें